📰CAG रिपोर्ट में खुलासा: किसानों के खाद फंड से करोड़ों की लूट, आखिर जवाबदेह कौन?
🌾 भूमिका
भारत के अन्नदाता यानी किसान, देश की रीढ़ हैं। उनके लिए सरकारें योजनाएं बनाती हैं, बजट जारी करती हैं और विकास का वादा करती हैं। लेकिन जब उन्हीं योजनाओं के पैसे से घोटाले होते हैं, तो सवाल उठते हैं व्यवस्था पर, नीयत पर और जवाबदेही पर। हाल ही में CAG (भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की ताज़ा रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि मध्यप्रदेश में खाद फंड से जुड़ा ₹5.31 करोड़ का भारी घोटाला सामने आया है।"
📌 क्या है यह खाद फंड घोटाला?
फर्टिलाइज़र डेवलपमेंट फंड (FDF) किसानों को उर्वरक (खाद) सहायता, सब्सिडी और जागरूकता कार्यक्रमों के लिए बनाया गया था। लेकिन CAG की रिपोर्ट के अनुसार:
- फंड की कुल राशि: ₹5.31 करोड़
- किसानों के हित में उपयोग: सिर्फ ₹5.10 लाख
- गैर-कृषि मद में खर्च: ₹4.79 करोड़
- खर्च कहां हुआ? गाड़ियों, ड्राइवरों, पेट्रोल और मेंटेनेंस पर
यानि जिस पैसे से किसानों को खाद या कृषि तकनीक मिलनी चाहिए थी, वह पैसा अधिकारियों की गाड़ियों की रफ्तार में उड़ गया।
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🚗 'प्रगति वाहन योजना' में घोटाले की रफ्तार
CAG रिपोर्ट के मुताबिक, 'प्रगति वाहन योजना' के नाम पर ₹2.25 करोड़ से अधिक राशि सिर्फ गाड़ियों पर ही खर्च कर दी गई। इस रकम का उपयोग ड्राइवरों की सैलरी, गाड़ियों के रख-रखाव, फ्यूल और अन्य व्यवस्थागत खर्चों में हुआ — जो पूरी तरह से FDF के मूल उद्देश्य के खिलाफ है।
🏢 विभाग का तर्क और CAG की प्रतिक्रिया
विभाग का तर्क था कि फील्ड विज़िट के लिए गाड़ियों की जरूरत थी, लेकिन CAG ने साफ शब्दों में कहा — ये खर्च गैर-जरूरी और अपारदर्शी था। मॉनिटरिंग एक सहायक गतिविधि है, मूल उद्देश्य किसानों की सीधी सहायता है। फंड का 90% से ज्यादा हिस्सा मॉनिटरिंग में खर्च होना नीतिगत विफलता है। यह सीधे-सीधे किसानों के अधिकार का हनन है।
📉 किसानों को नहीं मिला खाद पर डिस्काउंट
CAG ने एक और गड़बड़ी उजागर की — DAP और MOP जैसे खाद पर कंपनियों ने जो छूट दी थी, वो किसानों को नहीं मिली। ये छूट बिचौलियों या सरकारी स्तर पर ही रुक गई, जिससे किसानों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा।
💰 सरकार को 14 करोड़ से ज्यादा का घाटा
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि: खाद की खरीद ऊंचे दामों पर की गई, उसे सस्ती दर पर किसानों को बेचा गया. यह गड़बड़ी सिर्फ ₹4.38 करोड़ के घाटे तक सीमित नहीं रही — सब्सिडी और रिबेट न मिल पाने की वजह से कुल नुकसान ₹10.50 करोड़ से भी अधिक का रहा। यानि कुल मिलाकर ₹14.88 करोड़ का वित्तीय नुकसान, और इसका असर पड़ा सिर्फ और सिर्फ किसानों पर।
🔎 कौन लेगा ज़िम्मेदारी?
इस खुलासे के बाद जो सवाल सबसे पहले दिमाग में आता है, वह यह है "जब किसानों के नाम पर पैसा मिलता है, तो उसका उपयोग अधिकारियों की सुविधाओं पर क्यों होता है?
क्या सिर्फ रिपोर्ट बना देना ही काफी है? या दोषियों पर कोई कार्रवाई भी होगी?
- ✅ क्या होना चाहिए समाधान?
- ✅ किसानों के फंड्स की डिजिटल निगरानी होनी चाहिए
- ✅ खर्च की हर ट्रांजैक्शन पब्लिक पोर्टल पर उपलब्ध होनी चाहिए
- ✅ घोटाले में शामिल अफसरों पर आपराधिक मुकदमा चलना चाहिए
- ✅ किसानों को उनका वाजिब हक समय पर मिलना चाहिए
📢 निष्कर्ष
CAG की यह रिपोर्ट हमें एक सच्चाई से रूबरू कराती है — किसानों के नाम पर बजट तो बनता है, लेकिन ज़मीन पर उसका इस्तेमाल अकसर ताकतवर तंत्र की सेवा में होता है।
"यह घोटाला सिर्फ आंकड़ों में ₹5.31 करोड़ का नहीं, बल्कि खेत में खून-पसीना बहाने वाले अन्नदाता के भविष्य पर डाका है। अगर अब भी सिस्टम न जागा, तो 'जय किसान' सिर्फ किताबों तक सीमित रह जाएगा।"
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